कितने दूर निकल गए,
रिश्तो को निभाते निभाते
रिश्तो को निभाते निभाते
खुद को खो दिया हमने,
अपनों को पाते पाते
अपनों को पाते पाते
लोग कहते है हम मुश्कुराते बहोत है ,
और हम थक गए दर्द छुपाते छुपाते
और हम थक गए दर्द छुपाते छुपाते
"खुश हूँ और सबको खुश रखता हूँ,
लापरवाह हूँ फिर भी सबकी परवाह करता हूँ.
लापरवाह हूँ फिर भी सबकी परवाह करता हूँ.
मालूम हे कोई मोल नहीं मेरा.....
फिर भी,
कुछ अनमोल लोगो से रिश्ता रखता हूँ......!
:)
फिर भी,
कुछ अनमोल लोगो से रिश्ता रखता हूँ......!
:)
thanks to Namish fo forwarding r this wonderful poem
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